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साली की चुदाई - चुत पर जीजू के वीर्य की पिचकारी पड़ रही थी
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मैं अपनी दीदी के यहाँ कुछ दिनों के लिये गई थी। दीदी की नई-नई शादी हुई थी। अभी जीजू में और दीदी में नया-नया जोश भी था। दीदी और जीजू का कमरा ऊपर था। नीचे सिर्फ़ एक बैठक थी। मैं बैठक में ही सोती थी। शाम को हम तीनों ही झील के किनारे घूमने जाया करते थे।
मैं अपनी दीदी के यहाँ कुछ दिनों के लिये गई थी। दीदी की नई-नई शादी हुई थी। अभी जीजू में और दीदी में नया-नया जोश भी था। दीदी और जीजू का कमरा ऊपर था। नीचे सिर्फ़ एक बैठक थी। मैं बैठक में ही सोती थी। शाम को हम तीनों ही झील के किनारे घूमने जाया करते थे।
मेरे नितम्भ थोड़े से भारी हैं और कुछ पीछे उभरे हुए भी हैं। मेरी सफ़ेद टाईट पैन्ट में नितम्भ बड़े ही सेक्सी लगते हैं। मेरे नितम्भों की दरार में घुसी पैन्ट देख कर किसी का भी लण्ड खड़ा हो सकता था।
फिर जीजू तो मेरे साथ ही रहते थे और कभी-कभी मेरे नितम्भों पर हाथ मार कर अपनी भड़ास भी निकाल लेते थे। उनकी ये हरकत मेरे शरीर का रोम-रोम खड़ा कर देती थी। आप यह कहानी हिंदी सेक्स स्टोरीज वेबसाइट पर पढ़ रहे है। झील के किनारे वहीं एक दुकान के बाहर कुर्सियाँ निकाल कर हम बैठ जाते थे और कोल्ड-ड्रिंक के साथ झील की ठंडी हवा का भी आनन्द लेते थे।
दीदी की अनुपस्थिति में जीजू मुझसे छेड़छाड़ भी कर लिया करते थे और मैं भी जीजू को आँखों से इशारा कर लेती थी। मुझे ये पता था कि जीजू मुझ पर भी अपनी नजर रखते हैं। मौका मिला तो शायद चोद भी दें। मैं उन्हें जान-बूझ के और छेड़ देती थी। घर आ कर हम डीनर करते थे। फिर जीजू और दीदी जल्दी ही अपने कमरे में चले जाते थे। लगभग दस बजे मैं अकेली हो जाती थी और कम्प्यूटर पर खेलती रहती थी।
ऐसे ही एक रात को मैं अकेली रूम में बोर हो रही थी। नींद भी नहीं आ रही थी। तो मैं घर की छत पर चली आई। ठन्डी हवा में कुछ देर घुमती रही, फिर सोने के लिये नीचे आई। पर जैसे ही दीदी के कमरे के पास से निकली मुझे सिसकरियों की आवाज आई। ऐसी सिसकारियाँ मैं पहचानती थी। जाहिर था कि दीदी चुद रही थी।
मेरी नज़र अचानक ही खिड़की पर पड़ी, वो थोड़ी सी खुली थी। जिज्ञासा जागने लगी। दबे कदमों से मैं खिड़की की ओर बढ़ गई। मेरा दिल धक से रह गया।
दीदी घोड़ी बनी हुई थी और जीजू पीछे से उसकी गाँड चोद रहे थे।
मुझे सिरहन सी उठने लगी मेरे चुत मे खुजली होने लगी जीजू ने अब दीदी के स्तनों को मसलना चालू कर दिया। मेरे हाथ स्वत: ही मेरे स्तनों पर आ गये मेरे चेहरे पर पसीना आने लगा। जीजू को दीदी की चुदाई करते पहली बार देखा। तो मेरी चुत भी गीली होने लगी थी। इतने में जीजू झड़ने लगे उसके वीर्य की पिचकारी दीदी के सुन्दर गोल गोल चूतड़ों पर पड़ रही थी।
मैं दबे पाँव वहाँ से हट गई और नीचे की सीढ़ियां उतर गई। मेरी साँसें चढ़ी हुई थीं। धड़कनें भी बढ़ी हुई थीं। दिल के धड़कने की आवाज़ कानों तक आ रही थी। मैं बिस्तर पर आकर लेट गई पर नींद ही नही आ रही थी। मुझे रह-रह कर चुदाई के दृश्य याद आ रहे थे। मैं बेचैन हो उठी और अपनी चुत में ऊँगली घुसा दी और ज़ोर-ज़ोर से अन्दर घुमाने लगी।
कुछ ही देर में मैं झड़ गई। तब जा कर दिल कुछ शान्त हुआ।
सुबह मैं उठी तो जीजू दरवाजा खटखटा रहे थे। मैं तुरन्त उठी और कहा, "दरवाजा खुला है।"
जीजू चाय ले कर अन्दर आ गये।
उनके हाथ में दो प्याले थे। वो वहीं कुर्सी खींच कर बैठ गये और पूछने लगे, "मजा आ रहा है ना?"
मैं उछल पड़ी। मुझे लगा शायद जीजू ने कल रात को देख लिया था।
"क्या, किसमें, कैसे, कौनसा मजा? मैं समझी नहीं।", मैं घबरा गई।
वो बाद में बोले, "आज तुम्हारी दीदी को दो दिन के लिए भोपाल हेड-क्वार्टर जाना है। अब आपको घर सँभालना है।"
"हम लड़कियाँ यही तो करती हैं, फिर और क्या-क्या सँभालना पड़ेगा?", मैंने जीजू पर कटाक्ष किया।
"बस यही मेरे को और घर को सँभाल लोगी क्या?", जीजू भी दुहरी मार वाला मज़ाक कर रहे थे।
"जीजू मजाक अच्छा करते हो।", मैंने अपनी चाय पी कर प्याला मेज़ पर रख दिया।
मैंने उठने के लिए बिस्तर पर से जैसे ही पाँव उठाए मेरी स्कर्ट ऊपर उठ गई और मेरी नंगी गौरी कोरी चूत उन्हें नज़र आ गई। मैंने जान-बूझ कर जीजू को एक झटका दे दिया। मुझे लगा कि आज ही इसकी ज़रूरत है। जीजू एक टक से मुझे देखने लगे। मुझे एक नज़र में पता चल गया कि मेरा जादू चल गया।
मैंने कहा, "जीजू, मुझे ऐसे क्या देख रहे हो?"
"कुछ नही सवेरे-सवेरे अच्छी चीजों के दर्शन करना शुभ होता है।"
मै तुरंत जीजू का इशारा समझ गई और मन ही मन मुस्कुरा उठी।
"आपने सवेरे-सवेरे किसके दर्शन किये", मैंने अंजान बनते हुए पूछा।
लगा कि थोड़ी कोशिश से काम बन जायेगा पर मुझे क्या पता था कि कोशिश तो जीजू खुद ही कर रहे थे।
शाम मे दीदी दफ्तर से आकर दौरे पर जाने की तैयारी करने लगी। डिनर जल्दी ही कर लिया फिर जीजू दीदी को छोड़ने स्टेशन चले गये। मैंने भी अपनी टाईट जीन्स पहन ली और मेक-अप कर लिया। जीजू के आते ही मैंने झील के किनारे घूमने की फ़रमाईश कर दी। वो फ़िर से कार में बैठ गये। मैं भी उनके साथ वाली सीट पर बैठ गई। जीजू मेरे साथ बहुत खुश लग रहे थे। कार उन्होंने उसी दुकान पर रोकी, जहाँ हम रोज़ कोल्ड-ड्रिंक लेते थे। पर आज कोल्ड-ड्रिंक जीजू ने कार में ही मंगा ली।
जीजू बोले, "हाँ तो मैं कह रहा था कि मजा आ रहा है ना?"
मुझे अब तो यकीन हो गया था कि जीजू ने मुझे रात को देख लिया था।
"हां, मुझे बहुत मज़ा आ रहा है", मैंने प्रतिक्रिया जानने के लिए तीर मारा
जीजू ने तिरछी निगाहों से देखा और हँस पड़े और बोले, "अच्छा फिर क्या किया आप ही बताओ कि अच्छा लगने के लिये क्या करते हैं?"
जीजू का हाथ धीरे-धीरे सरकता हुआ मेरे हाथों पर आ गया।
मैंने कुछ नही कहा लगा कि बात बन रही है।
"मैं बताऊँगा तो कहोगी कि अच्छा लगने के बाद आईस-क्रीम खाते हैं", और हँस पड़े और मेरा हाथ जोर से पकड़ लिया।
मैं जीजू को तिरछी नजरों से घूरती रही कि ये आगे क्या करेंगे।
मैंने भी हाथ दबा कर इज़हार का इशारा किया।
हम दोनों मुस्कुरा पड़े। आँखों ही आँखों में हम दोनों सब समझ गये थे। पर एक झिझक अभी भी बाकी थी।
हम घर वापस आ गये। जीजू अपने कमरे में जा चुके थे।
मैं निराश हो गई, सब मज़ाक में ही रह गया। आप यह कहानी हिंदी सेक्स स्टोरीज वेबसाइट पर पढ़ रहे है। मैं निराश मन से बिस्तर पर लेट गई रोज की तरह आज भी मैंने बिना पैन्टी के एक छोटी सी स्कर्ट पहन रखी थी।
मैंने करवट ली और पता नही कब नींद आ गई।
रात को अचानक मेरी नींद खुल गई। जीजू हौले से मेरे स्तनों को सहला रहे थे। मैं रोमांचित हो उठी। मन ने कहा, "हाय। काम अपने आप ही बन गया!"
मैं चुपचाप अनजान बन कर लेटी रही। जीजू ने मेरी स्कर्ट ऊंची कर दी और नीचे से नंगी कर दिया। पंखे की हवा मेरी चूत पर लग रही थी। जीजू के हाथ मेरी चिकनी चूत पर फ़िसलने लगे। जीजू धीरे से मेरी पीठ से चिपक कर लेट गये।
उनका लण्ड खड़ा था। लण्ड का स्पर्श मेरी चूत की दरार पर लग रहा था। उनके सुपाड़े का चिकनापन मुझे बड़ा प्यारा लग रहा था।
उन्होने मेरे स्तनों को जोर से पकड़ कर और लण्ड को मेरी गाँड पर दबा दिया। मैंने भी लण्ड को गाँड ढीली करके रास्ता दे दिया और सुपाड़ा एक झटके में छेद के अन्दर था।
"जीजू, हाय रे! मार दी ना मेरी पिछाड़ी को", मेरे मुख से सिसकारी निकल पड़ी।
उसका लण्ड गाँड़ की गहराईयों में मेरी सिसकारियों के साथ उतरता ही जा रहा था।
"रीता जो बात तुझमें है, तेरी दीदी में नहीं है", जीजू ने आह भरते हुए कहा।
लण्ड एक बार बाहर निकल कर फिर से अन्दर घुसा जा रहा था। हल्का सा दर्द हो रहा था पर पहले भी मैं गाँड चुदवा चुकी थी। अब जीजू ने अपनी ऊँगली मेरी चूत में घुसा दी थी और दाने के साथ मेरी चूत को भी मसल रहे थे। मैं आनन्द से सराबोर हो गई। मेरी मन की इच्छा पूरी हो रही थी। जीजू पर दिल था और मुझे अब जीजू ही चोद रहे थे।
"मत बोलो जीजू बस चोदे जाओ।"
हाय कितना चिकना सुपाड़ा है।
"चोद दो आपकी साली की गाँड को", मैं बेशर्मी पर उतर आई थी।
उनका मोटा लण्ड तेजी से मेरी गाँड में उतरता जा रहा था।
अब जीजू ने बिना लण्ड बाहर निकाले ही मुझे उल्टी लेटा कर मेरी भारी गाण्ड पर सवार हो गये और हाथों के बल पर शरीर को ऊँचा उठा लिया और अपना लण्ड मेरी गाण्ड पर तेजी से मारने लगे।
उनका ये फ्री-स्टाईल चोदना मुझे बहुत भाया।
"राजू मेरी चूत का भी तो ख्याल करो", मैंने जीजू को घर के नाम से बुलाया।
"रीता मेरी तो शुरू से ही तुम्हारी चुत पर नजर थी। इतनी प्यारी चुत उभरी हुई और इतनी गहरी हाय मेरी जान।"
"जीजू ने लण्ड बाहर निकाल लिया और चुत को अपना निशाना बनाया।"
"जान चुत तैयार है ना? लो, ये गया।"
हाय इतनी चिकनी और गीली चुत और उनका लण्ड पीछे से ही मेरी चूत में घुस पड़ा। एक तेज मीठी सी टीस चूत में उठी चूत की दीवारों पर रगड़ से मेरे मुख से आनन्द की सीसकारी निकल गई।
"हाय रे! जीजू मर गई। मज़ा आ रहा है। और करो। जोर से करो। आज मेरी चुत को फाड़ डालो जल्दी हिलो।"
जीजू का लण्ड बहुत ही कड़क हो रहा था। जीजू की गाण्ड खूब उछल रही थी।
मेरी चुत, चुद रही थी। मेरी चूचियाँ भी बहुत कठोर हो गईं थीं।
मैंने जीजू से कहा, "जीजू, मेरी चूचियो को जोर से मसलो ना खींच डालो।"
जीजू तो चूचियाँ पहले से ही पकड़े हुए थे पर हौले-हौले से दबा रहे थे। मेरे कहते ही उन्हें तो मज़ा आ गया। जीजू ने मेरी दोनो चूचियो को मसल के रगड़ के चोदना शुरू कर दिया।
मेरी दोनों चूतड़ों की गोलाईयाँ उसके पेडू से टकरा रहीं थीं। लण्ड चूत में गहराई तक जा रहा था। घोड़े की तरह चूत को धक्के मार-मार कर मुझे चोद रहे थे। मेरे पूरे बदन में मीठी-मीठी लहरें उठ रहीं थीं। मैं अपनी आँखों को बन्द करके चुदाई का भरपूर आनन्द ले रही थी। मेरी उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी।
जीजू के भी चोदने से लग रहा था कि मंज़िल अब दूर नहीं है। उनकी तेजी और आहें तेज होती जा रही थी। उन्होने मेरे चूचक जोर से खींचने चालू कर दिये थे।
मैं भी अब चरमसीमा पर पहुँच रही थी। मेरी चूत ने जवाब देना शुरू कर दिया था। मेरे शरीर में रह-रह कर झड़ने जैसी मिठास आने लगी थी।
अब मैं अपने आप को रोक ना सकी और अपनी चूत और ऊपर कर दी बस उसके दो भरपूर लण्ड के झटके पड़े कि चूत बोल उठी कि बस बस… हो गया।
"जीजू, बस बस। मेरा माल निकला मै गई। आई! आह! आह! आह!
मैंने ज़ोर लगा कर अपनी चूचियाँ उनसे छुड़ा ली और बिस्तर पर अपना सर रख लिया और झड़ने का मज़ा लेने लगी उनका लण्ड भी आखिरी झटके लगा रहा था। आप यह कहानी हिंदी सेक्स स्टोरीज वेबसाइट पर पढ़ रहे है। फिर उनका कसाव मेरे शरीर पर बढ़ता गया और उन्होंने अपना लण्ड बाहर खींच लिया झड़ने के बाद मुझे चोट लगने लगी थी। थोड़ी राहत मिली अचानक मेरी चूत उनके लण्ड की फ़ुहारों से भीग उठी।
जीजू झड़ने लगे थे। रह-रह कर चुत पर वीर्य की पिचकारी पड़ रही थी। और अब मेरे चूतड़ों पर पड़ रही थी।
जीजू लण्ड को मसल-मसल कर अपना पूरा वीर्य निकाल रहे थे। जब पूरा वीर्य निकल गया तो जीजू ने पास पड़ा तौलिया उठाया और मेरी चुत को पौंछने लगे बोले, "रीता, तुमने तो आज मुझे मस्त कर दिया। जीजू ने मेरे चेहरे को चुम लिया और बोले इसलिये तो कहते है कि साली आधी घरवाली होती है।"
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