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दुल्हन को नदी में नंगी नहाते देखकर चोदा मजेदार चुदाई - Nangi dulhan ki chudai maje se choda
दुल्हन को नदी में नंगी नहाते देखकर चोदा मजेदार चुदाई - Nangi dulhan ki chudai maje se choda , Antarvasna Sex Stories , Hindi Sex Story , Real Indian Chudai Kahani , choda chadi cudai cudi coda free of cost , Time pass Story , Adult xxx vasna kahaniyan.
शहर जाने में अभी कुछ दिन बाकी थे, मैं घूमते हुए अपनी कॉटेज में चला गया। शरबत का एक ठंडा गिलास बना कर पी ही रहा था कि दरवाज़ा खटका।
खोला तो देखा कि सामने चम्पा खड़ी थी और उसके साथ एक और औरत भी थी।
मैं चम्पा को देख कर खुश हो गया लेकिन उसके साथ खड़ी औरत को देख कर कुछ हिचकिचाहट सी होने लगी।
चम्पा बोली- छोटे मालिक, सुना आप परीक्षा में पास हो गए, सोचा बधाई दे आऊँ। इनसे मिलो, यह निर्मला है। बेचारी का पति भी बाहर गया हुआ है। मैंने सोचा कि छोटे मालिक से मिलवा देती हूँ शायद इसका भी कुछ काम हो जाए।
मैं एकदम सकपका गया और मेरे मुंह से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था।
चम्पा बोली- छोटे मालिक, इसकी भी मदद कर दो, ज़िंदगी सुधर जायेगी इस बेचारी की।
मैं बोला- कैसी मदद कर दूँ चम्पा इसकी?
‘वही जैसी आपने हमारी मदद की!’
‘अरे मैं बदनाम हो जाऊँगा अगर गाँव वालों को पता चला तो? और फिर इसका पति भी नहीं है यहाँ। कैसे होगा यह सब?’
चम्पा ने कुछ सोचते हुए कहा- ऐसा करते हैं मालिक, आप इसको आज चोद दो तो इस का भी मन और शरीर ठीक हो जायेगा।
मैंने कहा- इससे पूछ लो क्या यह इस काम के लिए राज़ी है?
चम्पा ने निर्मला से पूछा- छोटे मालिक के सामने बताओ तुम क्या क्या चाहती हो? क्या इनसे चुदवाना है या नहीं? फिर अगर तुम को बच्चा ठहर जाता है तो छोटे मालिक जिमेवार नहीं होंगे। समझी न?
निर्मला ने हाँ में सर हिला दिया।
चम्पा ने फिर कहा- ऐसे नहीं, मुंह से बताओ छोटे मालिक को कि तुम क्या चाहती हो?
तब निर्मला बोली- मैं तैयार हूँ छोटे मालिक।
उसका मुंह शर्म से लाल हो गया।
यह सुन कर चम्पा निर्मला को लेकर अन्दर कमरे में चली गई और वहीं वो उसके कपड़े उतारने लगी।
अब मैंने उस औरत को गौर से देखा, उसकी आयु होगी 20-21 और वो रंग की साफ़ थी और जिस्म भरा हुआ, उसके उरोज काफी गोल और उभरे हुए लग रहे थे।
सबसे सुन्दर उसके मोटे और गोल चूतड़ थे जिनमें से काम वासना की एक महक आ रही थी।
मुझे लगा कि निर्मला कि उसका पूरा शरीर सिर्फ चुदाई के लिए बना था। गोल गदाज़ चूतड़ों के ऊपर उस की चूत बहुत उभरी हुई दिख रही थी। उसका सेक्सी बदन देख कर मेरा दिल उसको फ़ौरन चोदने के लिए तयार हो गया।
मैंने चम्पा से कहा- ऐसे नहीं चम्पा, तुम भी आओ मैदान में, तभी बात बनेगी।
चम्पा बोली- मैं कैसे आ सकती हूँ। मैं तो अपने पति को भी पास नहीं आने देती आजकल!
‘तो फिर रहने दो…’
‘नहीं नहीं छोटे मालिक, निर्मला का तो कल्याण कर दो। मुझको कष्ट होगा, 5वाँ महीना चल रहा है।’
‘देखो चम्पा अगर तुम आती हो तो ठीक, नहीं तो निर्मला को भी नहीं?’
‘देखेंगे, पहले निर्मला को तो चुदाई सुख दीजिये फिर मैं भी आ जाऊँगी।’
यह कह कर चम्पा ने मेरे कपड़े उतारने शुरू कर दिए। मेरे लंड को देख कर निर्मला के मुंह से ‘उई माँ’ निकल गया क्यूंकि मेरा लंड एकदम खड़ा था और 7इंच का और लंड चूत के अंदर जाने के लिए बेताब था।
चम्पा ने निर्मला के होटों को चूमा और फिर उसके मम्मों को चूसने लगी। यह देख कर मुझ से रहा नहीं गया, मैंने उसके मोटे स्तनों को चूसना शुरू कर दिया, चूचियाँ सख्त हो गई थीं, उनको मुंह में लेकर चूसा और फिर एक हाथ उसकी चूत में डाल दिया।
चूत एकदम गीली हो रही थी।
चम्पा झुक कर निर्मला के गोल चूतड़ों को चाट रही थी।
चम्पा ने निर्मला को पलंग पर लिटा दिया और मैं भी झट से उसकी फैली हुई टांगों के बीच चला गया और लंड को निशाने पर बैठा कर ज़ोर का धक्का दिया और लंड पूरा का पूरा चूत में चला गया गया।
निर्मला के मुंह से एक हल्की सिसकारी निकली और उसकी बाँहों ने मेरे को घेर लिया और अपनी छाती से चिपका लिया। कभी धीरे और कभी तेज़ धक्कों से शुरू हो गई हमारी यौन जंग…
शीघ्र ही निर्मला की चूत से पानी छूट गया और मैं तब भी अपने धक्कों में लगा रहा।
कुछ समय बाद ही निर्मला का दूसरी बार भी छूटा और वो टांगें पसार कर लेट गई।
मैंने चम्पा की तरफ देखा, उसका मुंह शारीरिक गर्मी से लाल हो रहा था और उसका दायां हाथ धोती के अंदर था।
मैंने चम्पा को पलंग पर खींच लिया और उसको घोड़ी बना कर उसको पीछे से पेल दिया लेकिन मैं बड़े ध्यान से उसको चोदने लगा। बड़े धीरे धक्के मार रहा था और पूरा लंड अंदर नहीं डाल रहा था।
उसकी चूत भी पनिया गई थी।
और इस तरह प्यार से मैं चम्पा को भी चोद दिया।
एक बार उसके झड़ जाने के बाद में उसके ऊपर से उतर गया।
तब तक निर्मला अपनी ऊँगली से अपनी भगनसा को मसल रही थी और बड़े ध्यान से चम्पा की चुदाई को देख रही थी। जैसे ही मैं चम्पा के ऊपर से हटा, निर्मला ने अपनी टांगें फ़ैला दी और मुझको अपने ऊपर आने के लिए खींचने लगी, झट से मैं चम्पा की चूत को छोड़ कर निर्मला पर चढ़ गया।
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थोड़े धक्के मारने के बाद मैंने उसको भी घोड़ी बनने के लिए कहा और वो झट से घोड़ी बन गई।
तब मैंने उसको फुल स्पीड से चोदना शुरू किया। उसके मुंह से कुछ अजीब सी आवाज़ आ रही थी जैसे कह रही हो ‘फाड़ दो मुझको… और ज़ोर से चोदो राजा।’
जैसे वो बोल रही थी वैसे ही मेरा जोश और बढ़ रहा था और मैं पूरी ताकत के साथ उसको चोदने में लग गया। उसके अंदर बहुत दिनों का यौन इच्छा का दबा हुआ सारा जोश जैसे एक साथ बाहर निकलने के लिए उतावला हो रहा हो।
अबकी बार जब निर्मला छूटी तो उसके चूतड़ उछलने लगे।
मैंने चुदाई रोक कर बिन्दू की तरफ देखा तो वो भी हैरान थी कि निर्मला इतनी ज्यादा गर्म हो गई थी और तभी मुझको महसूस हुआ कि पानी का फव्वारा निर्मल की चूत से निकल रहा है और मेरे लंड समेत मेरा पेट तक को भिगो दिया।
फिर अपने आप ही मेरा भी छूट गया और वो उसकी चूत की गहराई तक अंदर गया।
थोड़ी देर बाद हम तीनों संयत हुए।
मैंने चम्पा से कहा- आज से बिन्दू भी नहीं आयेगी क्योंकि उसका घरवाला वापस आ गया है।
चम्पा बोली- अच्छा तो फिर आप निर्मला को चोद लिया करना रोज़!
‘कैसे होगा यह सब? यह हमारे घर काम नहीं करती ना?’
‘तो आप इसको कॉटेज में बुला लिया करो ना, क्यों ऐसा नहीं कर सकते क्या?’
‘कर सकता हूँ लेकिन किसी ने देख लिया तो? फिर रोज़ रोज़ मुझको गर्मी में यहाँ आना पड़ेगा।’
‘बोलो फिर क्या करें? क्यों निर्मला मालिक के घर काम करोगी?’
निर्मला बोली- कर लिया करूंगी। दिन को काम कर के रात को घर आ जाया करूंगी, क्यों ठीक है?
‘नहीं, रात भी रुकना पड़ेगा तुझको!’
‘मेरी सास है न, वो शायद न माने, कोशिश करती हूँ।’
फिर वो दोनों चली गई और मैं वहीं सो गया।
अगले दिन चम्पा निर्मला को लेकर मम्मी से मिलने आई। थोड़ी देर बाद वो दोनों मम्मी के साथ मेरे कमरे में आईं। मम्मी ने आते ही कहा- सोमू, चम्पा इस निर्मला को ले कर आई है तुम्हारे काम के लिए! बोलो ठीक है यह?
मैंने कहा- मम्मी, आप जो फैसला कर लो, वही ठीक है।
मम्मी ने चम्पा को कहा- चम्पा, तुम निर्मला को सोमू का काम समझा देना। वैसे ही यह तो जल्दी शहर जाने वाला है, उसके बाद मैं देखूंगी इसको कहाँ रखें।
अगले दिन चम्पा निर्मला को लेकर मम्मी से मिलने आई। थोड़ी देर बाद वो दोनों मम्मी के साथ मेरे कमरे में आईं। मम्मी ने आते ही कहा- सोमू, चम्पा इस निर्मला को ले कर आई है तुम्हारे काम के लिए! बोलो ठीक है यह?
मैंने कहा- मम्मी, आप जो फैसला कर लो, वही ठीक है।
मम्मी ने चम्पा को कहा- चम्पा, तुम निर्मला को सोमू का काम समझा देना। वैसे ही यह तो जल्दी शहर जाने वाला है, उसके बाद मैं देखूंगी इसको कहाँ रखें।
निर्मला भी काफी सुघड़ औरत थी, सबसे अच्छी चीज़ जो उसकी मुझको लगी थी वो उसकी मीठी और प्यारी आवाज़ थी। जब चम्पा ने उसको काम समझा दिया तो वो उसको लेकर मेरे पास आई और बोली- यह छोटे मालिक का कमरा है, इसको साफ़ सुथरा रखना अब तेरा काम है निर्मला! छोटे मालिक के हर काम को ध्यान से और मन लगा कर करना। जैसा वो कहें, वैसा ही करना, छोटे मालिक तेरा पूरा ख्याल करेंगे।
मैंने पूछा- क्यों चम्पा क्या यह रात रहेगी यहाँ?
‘हाँ छोटे मालिक, मैंने इसकी सास से बात कर ली है और वो मान गई है। यह अब दिन रात आप की सेवा करेगी छोटे मालिक!’
‘क्यों निर्मला? करेगी न हर प्रकार की सेवा?’
यह कहते हुए चम्पा ने मुझको आँख मारी, मैं भी मुस्कुरा दिया।
‘और सुन निर्मला तू रात में अपना बिस्तर यहाँ ही बिछाया करेगी और छोटे मालिक का पूरा ध्यान रखेगी। ठीक है न?’
‘अच्छा छोटे मालिक, मैं अब चलती हूँ!’
मैं बोला- रुक चम्पा।
मैं अपनी अलमारी की तरफ गया और कुछ रूपए निकाल कर ले आया, 100 रूपए मैंने चम्पा को दिए और 100 ही निर्मला को दे दिए। दोनों बहुत खुश हो गईं और जाने से पहले मैंने चम्पा के होंट चूम लिए और उससे कहा- देख चम्पा तुझको जब भी किसी किस्म की मदद की ज़रूरत हो तो बिना हिचक के आ जाना मेरे पास। तुमने मुझको बहुत कुछ सिखाया है।
और फिर मैंने उसको बाँहों में भींच कर ज़ोरदार चुम्मी दी और उसके चूतड़ों को हाथ से रगड़ा।
मैंने निर्मला को मेरे लिए चाय लाने के लिए कहा।
बिंदु का जाना और निर्मला का आना बस एक साथ ही हुआ। निर्मला की धोती कुछ मैली और पुरानी लग रही थी। तो मैं मम्मी के कमरे से उसके पुराने कपड़ो की अलमारी से 3-4 धोतियाँ उठा लाया और निर्मला को दे दी।
वो और भी खुश हो गई और कुछ शरमाई और फिर आगे बढ़ कर उसने मेरे होंट चूम लिए और वहाँ से भाग गई।
मेरे कॉलेज का फैसला यह हुआ कि लखनऊ के सबसे बढ़िया कॉलेज में मेरा दाखला होगा और वहाँ मैं हॉस्टल में नहीं रहूँगा बल्कि अपनी कोठी में रहूंगा और मेरी देखभाल के लिए वहाँ खानसामा तो रहेगा ही, साथ में किसी नौकरानी का भी इंतज़ाम कर दिया जाएगा जो मेरा काम देखा करेगी जैसे यहाँ देखती है।
10 दिनों बाद मुझको लखनऊ जाना था तो मैं पूरी तरह चुदाई में लीन हो गया और निर्मला ने इसमें मेरा पूरा साथ दिया।
रात को चुदाई के बाद मैंने निर्मला से उसके पति के बारे में पूछना शुरू कर दिया। उसने बताया कि उसका पति भी बड़ा ही चोदू था, वो अक्सर रात में 3-4 बार चोदता था और उसको चुदाई के कई ढंग आते थे। जैसे वह चूत को तो चोदता था ही, वह मेरी गांड में भी लंड से चुदाई करता था।
‘अच्छा तो तुमको गांड चुदाई अच्छी लगी क्या?’
‘नहीं छोटे मालिक, मुझको चूत की चुदाई ही अच्छी लगती है लेकिन मेरे पति को गांड चुदाई की भी आदत पड़ चुकी थी तो वो हफ्ते दस दिन में एक बार गांड भी मार लिया करता था मेरी!’
‘अच्छा यह तो बड़ा ही गन्दा काम है निर्मला! तू कैसे बर्दाश्त करती थी उसकी यह गन्दी हरकत?’
‘नहीं छोटे मालिक गांड चुदाई कई मर्दों को बहुत अच्छी लगती है क्योंकि चोद चोद कर औरतों की चूत तो ढीली पड़ जाती है और अगर कहीं 3-4 बच्चे हो जाएँ तो चूत बिल्कुल ढीली पड़ जाती है और मर्द लोगों को चुदाई का मज़ा नहीं आता।
‘तुझको दर्द तो हुआ होगा बहुत?’
‘हाँ पहली बार तो हुआ था लेकिन मेरा आदमी तेल लगा कर मुझको चोदता था तो इतना दर्द नहीं होता था।’
‘पर तुझको मज़ा तो नहीं आता होगा?’
‘नहीं मुझको मज़ा नहीं आता था और बाद में पति के सो जाने पर मुझको ऊँगली करनी पड़ती थी। वैसे गाँव की कई औरतों ने मुझको बताया है उनके आदमी भी गांड मारते हैं उनकी।’
‘अच्छा यह बता तेरे पति की चुदाई से तेरा बच्चा क्यों नहीं हुआ?’
‘मेरे पति के वीर्य बड़ा ही पतला था और बहुत जल्दी ही वो झड़ जाता था।’
‘कितने साल हो गए तेरी शादी को?’
वो बोली- 3 साल हो जायेंगे अगले महीने!
वो उदास हो कर बोली।
‘इस बीच किसी और मर्द से नहीं चुदवाया क्या?’
वो शर्मा गई और बोली- नहीं छोटे मालिक!
यह कहते हुए मुझको लगा कि वो झूठ बोल रही है, मैंने कहा- मुझको लगता है तुम काफी चुदी हुई हो। सच बताना क्या किसी और से भी चुदवाया है कभी? मैं बिल्कुल बुरा नहीं मानूँगा।
वो काफी देर चुप रही लेकिन मैं उसके चेहरे के भाव पढ़ कर यह अंदाजा लगा रहा था कि सच बोलने से घबरा रही है।
‘निर्मला सच बता दो, मैं बिल्कुल किसी को नहीं बताऊँगा। कौन था वो जिससे चुदवाती रही थी तुम?’
निर्मला बोली- मेरे पड़ोस का लड़का था। हमारा गुसलखाना नहीं है तो हम या तो नदी पर नहाती हैं या फिर घर के बाहर छप्पर में कपड़ा बाँध कर नहा लेती हैं। एक दिन मैं नहा रही थी तो मुझको चुदवाने की गर्मी सताने लगी तो मैं बिना सोचे चूत में ऊँगली डाल कर अपनी तसल्ली कर रही थी कि मुझको ऐसा लगा कि कोई मुझको देख रहा है? मैं चौकन्नी हो गई और उठ कर देखा तो पड़ोस का लड़का छुप छुप कर मुझको नहाते हुए देख रहा था।
‘फिर क्या हुआ?’ मैं बोला।
‘वो भी गर्मी में आकर मुठ मार रहा था… मुझको देख कर भाग गया। उसका लंड देख कर मेरा दिल मचल गया लेकिन मैं अपनी तरफ से पहल नहीं करना चाहती थी।’
यह कहते हुए निर्मला फिर गर्म हो गई और मेरे लंड के साथ खेलने लगी, मैं भी अपना हाथ उसकी चूत पर फेर रहा था।
उसकी चूत काफी गीली हो गई थी, मैं लेट गया और उसको अपने ऊपर आने के लिए कहा, वो झट से मेरे ऊपर आ गई और मेरा लंड अपनी चूत में डाल कर मुझको ऊपर से धक्के मारने लगी।
मैं भी उसके मम्मों के साथ खेल रहा था, मेरी एक ऊँगली उसकी भगनसा को धीरे से मसल रही थी और फिर जल्दी ही निर्मला एकदम पूरे जोश में आ गई और मुझको काफी ज़ोर से चोदने लगी। उसकी कमर बड़ी तेज़ी से ऊपर नीचे हो रही थी, उसकी आँखें बंद थी और चुदाई का पूरा आनन्द ले रहे थी।
थोड़ी देर में ही वो ‘ओह्ह ओह्ह…’ करती हुई झड़ गई और मेरे ऊपर लेट गई। मैं उसकी मोटी गांड में एक ऊँगली डाल कर गोल गोल घुमाने लगा।
ऐसा करने से ही उसकी गांड अपने आप हिलने लगी और मेरी ऊँगली को लगा कि उसकी गांड खुल और बंद हो रही है।
दिल तो किया कि मैं भी इसकी गांड में लंड डाल दूँ लेकिन मन में बैठी घृणा ने मुझको ऐसा करने से रोक दिया।
जब वो बिस्तर पर फिर लेटी तो मैंने पूछा- फिर क्या हुआ उस लड़के के साथ?
वो बोली- वो लड़का डर के मारे मेरे पास ही नहीं आता था।
एक दिन मैं जंगल-पानी करके आ रही थी, वह लड़का मिल गया और बोला- भौजी बुरा तो नहीं माना न?
‘नहीं रे, बुरा क्या मानना है?’ मैं बोली।
‘तो भौजी हो जाए किसी दिन?’
‘क्या हो जाए?’
‘अरे वही जो भैया करते थे तुम्हारे साथ!’
धत्त… ऐसा भी कभी होता है? पिद्दी भर का लौण्डा और यह बात?’
‘पिद्दी कहाँ, तुमने मेरा लंड देख लिया था न, पूरा मर्दाना है।’
‘चल दिखा खोल कर?’
‘क्या कह रही हो भौजी? यहाँ दिखाऊँ क्या?’
‘नहीं, इधर ईख के खेत में आ जा!’
ईख के खेत में मैंने उसका लंड देखा, होगा 5 इंच का।
लेकिन मेरे ऊपर तो कामवासना का भूत सवार था, मैंने उसका लंड पकड़ लिया और उसको लिटा दिया और मैं उसके ऊपर चढ़ बैठी और ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगी ऊपर से और वो 2 मिन्ट में ही झड़ गया।
लेकिन उसका लंड अभी भी अकड़ा रहा और मैं फिर उसको चोदने लगी और दूसरी बार वो 10 मिन्ट तक डटा रहा और मेरा एक बार उसके साथ ही छूट गया।
मैं चुप बैठा रहा।
निर्मला ने पूछा- छोटे मालिक, कहीं आप बुरा तो नहीं मान गए?
निर्मला गैर मर्दों से अपनी चूत चुदाई के किस्से सुनाती रही, मैं चुप बैठा रहा।
निर्मला ने पूछा- छोटे मालिक, कहीं आप बुरा तो नहीं मान गए?
‘नहीं नहीं… बुरा कैसा! अच्छा किया अपनी तसल्ली कर ली तुमने! सच बताना उस लड़के के इलावा किसी और से तो नहीं करवाया तुमने?’
‘नहीं नहीं छोटे मालिक, बिल्कुल नहीं!’
‘और किसी औरत या लड़की के साथ तो नहीं किया कभी?’
‘यह आप क्या पूछ रहे हैं छोटे मालिक?’
‘नहीं मैंने सुना है तुम औरतें आपस में भी खूब लग जाती हो एक दूसरी के साथ!’
वो चुप रही और उसकी यह चुप्पी से मुझको लगा कि आपसी सम्बन्ध भी थे इसके दूसरी औरतों के साथ।
‘नदी में कहाँ नहाती हो तुम सब?’
‘वही जो घाट है न उस पर ही नहाती हैं सब, लेकिन आदमियों और लड़कों का उस तरफ आना मना है।’
‘अच्छा? कोई जगह तो होगी जहाँ से कुछ देखा जा सके?’
वो हिचकते हुए बोली- है तो सही, आप देखना चाहते हैं क्या?
‘अगर तुम दिखाओ तो इनाम मिलेगा।’
वो बोली- कल देखने आ सकते हो?
‘हाँ, क्यों नहीं।’
‘अच्छा तो मैं आपको ले जाऊँगी।’
फिर हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में सो गये।
सुबह होने से पहले मैंने निर्मला को फिर चोदा और उसके गोल और मोटे चूतड़ जो एक मोटे गद्दे के समान थे, मुझको बहुत ही सेक्सी लगते थे और मैं उनको बार बार छूना चाहता था।
नाश्ता करने के बाद मैं और निर्मला दोनों नदी की ओर चल पड़े। नदी के निकट आते ही निर्मला मुझसे आगे चलने लगी और मैं उसके पीछे थोड़ी दूर पर चलने लगा।
फिर उसने मुझको इशारा किया और हम एक घनी झड़ी की ओर मुड़ गए।
काँटों से बचते हुए हम एक जगह पहुँचे जहाँ हम बिल्कुल छिप गए थे लेकिन नदी की तरफ़ हम साफ़ देख सकते थे।
निर्मला अपने साथ एक चादर लाई थी और हमने वो बिछा ली और हम दोनों आराम से बैठ गए। फिर मैंने जगह का जायज़ा लिया और देखा कि वो तो पूरी तरह से ढकी छुपी थी और हमको कोई देख भी नहीं सकता था।
नदी पर अभी इक्का दुक्का औरतें ही नहा रहीं थीं लेकिन उनमें कोई देखने लायक नहीं थी। तो थोड़ी फुर्सत थी तो मैंने निर्मला को चूमना शुरू कर दिया, उसके ब्लाउज के अंदर हाथ डाल कर उसके गोल उरोजों के साथ खेलना शुरू कर दिया।
फिर एक हाथ उसकी धोती के अंदर डाल दिया और उसकी बालों भरी चूत को मसलने लगा, वो धीरे धीरे गरम होने लगी, उसने मेरी पैंट से मेरे लंड को निकाल लिया, वो उसका हाथ लगते ही एकदम अकड़ गया।
वो उसको हाथ से हिलाने लगी, तब तक उसकी चूत भी गर्म हो कर पनिया गई थी।
निर्मला बोली- बैठ कर ही कर लेते हैं।
वो कैसे?
उसने अपनी टांगें पसार दी और धोती को ऊपर कर दिया और मुझको टाँगों के बीच मैं बैठने के लिए कहने लगी। मैं लंड को निकाल कर टांगों के बीच बैठ गया और तब वो अपने हाथ से मेरा लौड़ा अपनी चूत के मुंह पर रख कर मुझको धक्का मारने के लिए बोलने लगी।
एक ही धक्के में लौड़ा पूरा अंदर चला गया और मैंने अपने हाथ उसकी गर्दन में डाल दिए और ज़ोर से धक्के मारने लगा। वो भी जवाबी धक्के मारती रही।
उधर हमने नदी की तरफ देखा तो एक जवान नई दुल्हन नहाने के लिए कपड़े बदल रही थी।
गाँव के हिसाब से वो काफी जवान और सुन्दर लग रही थी।
उसने ब्लाउज उतार दिया बिना किसी शर्म झिझक के उसके छोटे लेकिन कठोर उरोज बाहर आ गए थे।
इधर मैं और निर्मला एक दूसरे से अपने अंगों से जुड़े थे, लेकिन हमारी नज़रें तो नदी किनारे उस नई दुल्हनिया पर अटकी थीं।
उसने सिर्फ ब्लाउज ही उतारा और पेटीकोट के साथ ही नहाने लगी। वो सारे शरीर पर साबुन लगा रही थी और खास तौर पर अपनी चूत पर तो वो 5 मिन्ट साबुन रगड़ती रही। और फिर वो नदी के अंदर चली गई और तैरती हुई थोड़ी दूर चली गई।
पानी से गीला उसका बदन चमक रहा था, जब वो नदी की सतह से ऊपर आती थी तो उसके गोल उरोज धूप में चमकते थे। ऐसा लगता था कि सोने की परी नदी में तैर रही हो।
यह सब देख कर मेरे लंड पूरे जोश में आ गया और मैंने अपने हाथ निर्मला की गांड के नीचे रखे और फ़ुल स्पीड से धक्के मारने लगा।
‘ओह्ह्ह ओह्ह…’ करती हुई निर्मला तो झड़ गई लेकिन मैं अभी भी जोश में था, आँखें उस अर्धनग्न स्त्री पर थी जो मुक्त पंछी की तरह नदी में तैर रही थी और जिसका पेटिकोट भी उसके शरीर के साथ चिपक गया था और उस गीले कपड़े में से उसकी गोल जांघें और चूतड़ साफ़ दिख रहे थे, हल्की झलक उसकी काली झांटों की भी मिल रही थी।
मैं बेतहाशा निर्मला को चूमने लगा और उसके चूतड़ जो मेरे हाथों में थे तेज़ी से आगे पीछे करने लगा।
और फिर मैंने निर्मला को घोड़ी बना दिया और उसको पीछे से तेज़ तेज़ चोदने लगा।
लेकिन मेरी नज़र उस नहाती हुई औरत पर ही थी।
जब निर्मला एक बार और छूटी तो मैं भी उसको छोड़ कर वहाँ बैठ गया, तभी वो औरत जिधर हम बैठे थे उधर आने लगी। उसके हाथ में पेटीकोट और ब्लाउज था।
मैंने घबरा के निर्मला को देखा, वो मस्त बैठी थी। मेरा डर समझते हुए उसने अपने होंटों पर ऊँगली रख कर कहा कि चुप रहूँ।
मैं हैरानी से उस आती हुई औरत को देखने लगा जो हमारी झाड़ी के निकट आ गई लेकिन 10 फ़ीट पहले रुक गई और इधर उधर देखने के बाद उसने अपना गीला पेटीकोट उतार दिया और धुला हुआ पहनने लगी।
उसी समय उसकी चूत के पूरे दर्शन हो गए। काले चमकीले बालों से घिरी चूत को उसने गीले पेटीकोट से पौंछा।
ऐसा करते समय उसकी चूत के अंदर की लाली भी दिख गई, मैं निहाल हो गया।
वो जल्दी से पेटीकोट बदल कर वापस नदी किनारे चली गई लेकिन मेरे लंड का बुरा हाल कर गई।
मेरी हालत देख कर निर्मला को तरस आया और उसने अपने मुंह से मेरा लंड चूसना शुरू कर दिया। उसके ऐसा करते ही मेरा फव्वारा छूटा और निर्मला ने सारा रस अपने मुंह में ले लिया।
हम थक कर वहीं पसर गए।
मुझको याद आया कि यह नज़ारा मैंने पहले भी देखा था, कम्मो के साथ जब हमने चम्पा को नहाते हुए देखा था।बिलकुल वही दृश्य था लेकिन चम्पा तब बहुत ही सेक्सी लग रही थी क्यूंकि वो चुदाई का आनन्द काफी समय ले चुकी थी और यह लड़की तो नई नई शादी का आनन्द ले रही थी।
अब नदी किनारे कोई सुन्दर औरत नहीं थी जिसको देखने के लिए हम रुकते तो जल्दी ही वहाँ से चल दिए और कॉटेज में आ गए। जहाँ हमने लेमन पी फिर वहीं लेट गए।
मैंने निर्मल को कहा कि वो घर जाये, मैं बाद में आता हूँ।
वहीं यह सोचने लगा कि लखनऊ में मुझको चूत कहाँ से मिलेगी। उसका इंतज़ाम तो करना पड़ेगा। मैं चाहता था कि अभी तक मेरे पास गाँव की लड़की की तरह ही होनी चाहिए वरना वहाँ चुदाई का प्रबंध नहीं हो पायेगा।
मैंने सोचा कि यह काम तो चम्पा ही कर सकती है तो मैंने निर्मला को चम्पा को बुलाने का काम सौंपा और वो शाम को मुझको कॉटेज में मिली।
तब मैंने उसको सारी बात बताई और कहा कि मेरे मतलब की कोई गाँव वाली लड़की लखनऊ के लिए ढूंढ दे।
उसने वायदा किया कि वो जल्दी ही मेरी मर्ज़ी की लड़की ढूंढ देगी यह कह कर वो चली गई।
शहर जाने में अभी कुछ दिन बाकी थे, मैं घूमते हुए अपनी कॉटेज में चला गया। शरबत का एक ठंडा गिलास बना कर पी ही रहा था कि दरवाज़ा खटका।
खोला तो देखा कि सामने चम्पा खड़ी थी और उसके साथ एक और औरत भी थी।
मैं चम्पा को देख कर खुश हो गया लेकिन उसके साथ खड़ी औरत को देख कर कुछ हिचकिचाहट सी होने लगी।
चम्पा बोली- छोटे मालिक, सुना आप परीक्षा में पास हो गए, सोचा बधाई दे आऊँ। इनसे मिलो, यह निर्मला है। बेचारी का पति भी बाहर गया हुआ है। मैंने सोचा कि छोटे मालिक से मिलवा देती हूँ शायद इसका भी कुछ काम हो जाए।
मैं एकदम सकपका गया और मेरे मुंह से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था।
चम्पा बोली- छोटे मालिक, इसकी भी मदद कर दो, ज़िंदगी सुधर जायेगी इस बेचारी की।
मैं बोला- कैसी मदद कर दूँ चम्पा इसकी?
‘वही जैसी आपने हमारी मदद की!’
‘अरे मैं बदनाम हो जाऊँगा अगर गाँव वालों को पता चला तो? और फिर इसका पति भी नहीं है यहाँ। कैसे होगा यह सब?’
चम्पा ने कुछ सोचते हुए कहा- ऐसा करते हैं मालिक, आप इसको आज चोद दो तो इस का भी मन और शरीर ठीक हो जायेगा।
मैंने कहा- इससे पूछ लो क्या यह इस काम के लिए राज़ी है?
चम्पा ने निर्मला से पूछा- छोटे मालिक के सामने बताओ तुम क्या क्या चाहती हो? क्या इनसे चुदवाना है या नहीं? फिर अगर तुम को बच्चा ठहर जाता है तो छोटे मालिक जिमेवार नहीं होंगे। समझी न?
निर्मला ने हाँ में सर हिला दिया।
चम्पा ने फिर कहा- ऐसे नहीं, मुंह से बताओ छोटे मालिक को कि तुम क्या चाहती हो?
तब निर्मला बोली- मैं तैयार हूँ छोटे मालिक।
उसका मुंह शर्म से लाल हो गया।
यह सुन कर चम्पा निर्मला को लेकर अन्दर कमरे में चली गई और वहीं वो उसके कपड़े उतारने लगी।
अब मैंने उस औरत को गौर से देखा, उसकी आयु होगी 20-21 और वो रंग की साफ़ थी और जिस्म भरा हुआ, उसके उरोज काफी गोल और उभरे हुए लग रहे थे।
सबसे सुन्दर उसके मोटे और गोल चूतड़ थे जिनमें से काम वासना की एक महक आ रही थी।
मुझे लगा कि निर्मला कि उसका पूरा शरीर सिर्फ चुदाई के लिए बना था। गोल गदाज़ चूतड़ों के ऊपर उस की चूत बहुत उभरी हुई दिख रही थी। उसका सेक्सी बदन देख कर मेरा दिल उसको फ़ौरन चोदने के लिए तयार हो गया।
मैंने चम्पा से कहा- ऐसे नहीं चम्पा, तुम भी आओ मैदान में, तभी बात बनेगी।
चम्पा बोली- मैं कैसे आ सकती हूँ। मैं तो अपने पति को भी पास नहीं आने देती आजकल!
‘तो फिर रहने दो…’
‘नहीं नहीं छोटे मालिक, निर्मला का तो कल्याण कर दो। मुझको कष्ट होगा, 5वाँ महीना चल रहा है।’
‘देखो चम्पा अगर तुम आती हो तो ठीक, नहीं तो निर्मला को भी नहीं?’
‘देखेंगे, पहले निर्मला को तो चुदाई सुख दीजिये फिर मैं भी आ जाऊँगी।’
यह कह कर चम्पा ने मेरे कपड़े उतारने शुरू कर दिए। मेरे लंड को देख कर निर्मला के मुंह से ‘उई माँ’ निकल गया क्यूंकि मेरा लंड एकदम खड़ा था और 7इंच का और लंड चूत के अंदर जाने के लिए बेताब था।
चम्पा ने निर्मला के होटों को चूमा और फिर उसके मम्मों को चूसने लगी। यह देख कर मुझ से रहा नहीं गया, मैंने उसके मोटे स्तनों को चूसना शुरू कर दिया, चूचियाँ सख्त हो गई थीं, उनको मुंह में लेकर चूसा और फिर एक हाथ उसकी चूत में डाल दिया।
चूत एकदम गीली हो रही थी।
चम्पा झुक कर निर्मला के गोल चूतड़ों को चाट रही थी।
चम्पा ने निर्मला को पलंग पर लिटा दिया और मैं भी झट से उसकी फैली हुई टांगों के बीच चला गया और लंड को निशाने पर बैठा कर ज़ोर का धक्का दिया और लंड पूरा का पूरा चूत में चला गया गया।
निर्मला के मुंह से एक हल्की सिसकारी निकली और उसकी बाँहों ने मेरे को घेर लिया और अपनी छाती से चिपका लिया। कभी धीरे और कभी तेज़ धक्कों से शुरू हो गई हमारी यौन जंग…
शीघ्र ही निर्मला की चूत से पानी छूट गया और मैं तब भी अपने धक्कों में लगा रहा।
कुछ समय बाद ही निर्मला का दूसरी बार भी छूटा और वो टांगें पसार कर लेट गई।
मैंने चम्पा की तरफ देखा, उसका मुंह शारीरिक गर्मी से लाल हो रहा था और उसका दायां हाथ धोती के अंदर था।
मैंने चम्पा को पलंग पर खींच लिया और उसको घोड़ी बना कर उसको पीछे से पेल दिया लेकिन मैं बड़े ध्यान से उसको चोदने लगा। बड़े धीरे धक्के मार रहा था और पूरा लंड अंदर नहीं डाल रहा था।
उसकी चूत भी पनिया गई थी।
और इस तरह प्यार से मैं चम्पा को भी चोद दिया।
एक बार उसके झड़ जाने के बाद में उसके ऊपर से उतर गया।
तब तक निर्मला अपनी ऊँगली से अपनी भगनसा को मसल रही थी और बड़े ध्यान से चम्पा की चुदाई को देख रही थी। जैसे ही मैं चम्पा के ऊपर से हटा, निर्मला ने अपनी टांगें फ़ैला दी और मुझको अपने ऊपर आने के लिए खींचने लगी, झट से मैं चम्पा की चूत को छोड़ कर निर्मला पर चढ़ गया।
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थोड़े धक्के मारने के बाद मैंने उसको भी घोड़ी बनने के लिए कहा और वो झट से घोड़ी बन गई।
तब मैंने उसको फुल स्पीड से चोदना शुरू किया। उसके मुंह से कुछ अजीब सी आवाज़ आ रही थी जैसे कह रही हो ‘फाड़ दो मुझको… और ज़ोर से चोदो राजा।’
जैसे वो बोल रही थी वैसे ही मेरा जोश और बढ़ रहा था और मैं पूरी ताकत के साथ उसको चोदने में लग गया। उसके अंदर बहुत दिनों का यौन इच्छा का दबा हुआ सारा जोश जैसे एक साथ बाहर निकलने के लिए उतावला हो रहा हो।
अबकी बार जब निर्मला छूटी तो उसके चूतड़ उछलने लगे।
मैंने चुदाई रोक कर बिन्दू की तरफ देखा तो वो भी हैरान थी कि निर्मला इतनी ज्यादा गर्म हो गई थी और तभी मुझको महसूस हुआ कि पानी का फव्वारा निर्मल की चूत से निकल रहा है और मेरे लंड समेत मेरा पेट तक को भिगो दिया।
फिर अपने आप ही मेरा भी छूट गया और वो उसकी चूत की गहराई तक अंदर गया।
थोड़ी देर बाद हम तीनों संयत हुए।
मैंने चम्पा से कहा- आज से बिन्दू भी नहीं आयेगी क्योंकि उसका घरवाला वापस आ गया है।
चम्पा बोली- अच्छा तो फिर आप निर्मला को चोद लिया करना रोज़!
‘कैसे होगा यह सब? यह हमारे घर काम नहीं करती ना?’
‘तो आप इसको कॉटेज में बुला लिया करो ना, क्यों ऐसा नहीं कर सकते क्या?’
‘कर सकता हूँ लेकिन किसी ने देख लिया तो? फिर रोज़ रोज़ मुझको गर्मी में यहाँ आना पड़ेगा।’
‘बोलो फिर क्या करें? क्यों निर्मला मालिक के घर काम करोगी?’
निर्मला बोली- कर लिया करूंगी। दिन को काम कर के रात को घर आ जाया करूंगी, क्यों ठीक है?
‘नहीं, रात भी रुकना पड़ेगा तुझको!’
‘मेरी सास है न, वो शायद न माने, कोशिश करती हूँ।’
फिर वो दोनों चली गई और मैं वहीं सो गया।
अगले दिन चम्पा निर्मला को लेकर मम्मी से मिलने आई। थोड़ी देर बाद वो दोनों मम्मी के साथ मेरे कमरे में आईं। मम्मी ने आते ही कहा- सोमू, चम्पा इस निर्मला को ले कर आई है तुम्हारे काम के लिए! बोलो ठीक है यह?
मैंने कहा- मम्मी, आप जो फैसला कर लो, वही ठीक है।
मम्मी ने चम्पा को कहा- चम्पा, तुम निर्मला को सोमू का काम समझा देना। वैसे ही यह तो जल्दी शहर जाने वाला है, उसके बाद मैं देखूंगी इसको कहाँ रखें।
अगले दिन चम्पा निर्मला को लेकर मम्मी से मिलने आई। थोड़ी देर बाद वो दोनों मम्मी के साथ मेरे कमरे में आईं। मम्मी ने आते ही कहा- सोमू, चम्पा इस निर्मला को ले कर आई है तुम्हारे काम के लिए! बोलो ठीक है यह?
मैंने कहा- मम्मी, आप जो फैसला कर लो, वही ठीक है।
मम्मी ने चम्पा को कहा- चम्पा, तुम निर्मला को सोमू का काम समझा देना। वैसे ही यह तो जल्दी शहर जाने वाला है, उसके बाद मैं देखूंगी इसको कहाँ रखें।
निर्मला भी काफी सुघड़ औरत थी, सबसे अच्छी चीज़ जो उसकी मुझको लगी थी वो उसकी मीठी और प्यारी आवाज़ थी। जब चम्पा ने उसको काम समझा दिया तो वो उसको लेकर मेरे पास आई और बोली- यह छोटे मालिक का कमरा है, इसको साफ़ सुथरा रखना अब तेरा काम है निर्मला! छोटे मालिक के हर काम को ध्यान से और मन लगा कर करना। जैसा वो कहें, वैसा ही करना, छोटे मालिक तेरा पूरा ख्याल करेंगे।
मैंने पूछा- क्यों चम्पा क्या यह रात रहेगी यहाँ?
‘हाँ छोटे मालिक, मैंने इसकी सास से बात कर ली है और वो मान गई है। यह अब दिन रात आप की सेवा करेगी छोटे मालिक!’
‘क्यों निर्मला? करेगी न हर प्रकार की सेवा?’
यह कहते हुए चम्पा ने मुझको आँख मारी, मैं भी मुस्कुरा दिया।
‘और सुन निर्मला तू रात में अपना बिस्तर यहाँ ही बिछाया करेगी और छोटे मालिक का पूरा ध्यान रखेगी। ठीक है न?’
‘अच्छा छोटे मालिक, मैं अब चलती हूँ!’
मैं बोला- रुक चम्पा।
मैं अपनी अलमारी की तरफ गया और कुछ रूपए निकाल कर ले आया, 100 रूपए मैंने चम्पा को दिए और 100 ही निर्मला को दे दिए। दोनों बहुत खुश हो गईं और जाने से पहले मैंने चम्पा के होंट चूम लिए और उससे कहा- देख चम्पा तुझको जब भी किसी किस्म की मदद की ज़रूरत हो तो बिना हिचक के आ जाना मेरे पास। तुमने मुझको बहुत कुछ सिखाया है।
और फिर मैंने उसको बाँहों में भींच कर ज़ोरदार चुम्मी दी और उसके चूतड़ों को हाथ से रगड़ा।
मैंने निर्मला को मेरे लिए चाय लाने के लिए कहा।
बिंदु का जाना और निर्मला का आना बस एक साथ ही हुआ। निर्मला की धोती कुछ मैली और पुरानी लग रही थी। तो मैं मम्मी के कमरे से उसके पुराने कपड़ो की अलमारी से 3-4 धोतियाँ उठा लाया और निर्मला को दे दी।
वो और भी खुश हो गई और कुछ शरमाई और फिर आगे बढ़ कर उसने मेरे होंट चूम लिए और वहाँ से भाग गई।
मेरे कॉलेज का फैसला यह हुआ कि लखनऊ के सबसे बढ़िया कॉलेज में मेरा दाखला होगा और वहाँ मैं हॉस्टल में नहीं रहूँगा बल्कि अपनी कोठी में रहूंगा और मेरी देखभाल के लिए वहाँ खानसामा तो रहेगा ही, साथ में किसी नौकरानी का भी इंतज़ाम कर दिया जाएगा जो मेरा काम देखा करेगी जैसे यहाँ देखती है।
10 दिनों बाद मुझको लखनऊ जाना था तो मैं पूरी तरह चुदाई में लीन हो गया और निर्मला ने इसमें मेरा पूरा साथ दिया।
रात को चुदाई के बाद मैंने निर्मला से उसके पति के बारे में पूछना शुरू कर दिया। उसने बताया कि उसका पति भी बड़ा ही चोदू था, वो अक्सर रात में 3-4 बार चोदता था और उसको चुदाई के कई ढंग आते थे। जैसे वह चूत को तो चोदता था ही, वह मेरी गांड में भी लंड से चुदाई करता था।
‘अच्छा तो तुमको गांड चुदाई अच्छी लगी क्या?’
‘नहीं छोटे मालिक, मुझको चूत की चुदाई ही अच्छी लगती है लेकिन मेरे पति को गांड चुदाई की भी आदत पड़ चुकी थी तो वो हफ्ते दस दिन में एक बार गांड भी मार लिया करता था मेरी!’
‘अच्छा यह तो बड़ा ही गन्दा काम है निर्मला! तू कैसे बर्दाश्त करती थी उसकी यह गन्दी हरकत?’
‘नहीं छोटे मालिक गांड चुदाई कई मर्दों को बहुत अच्छी लगती है क्योंकि चोद चोद कर औरतों की चूत तो ढीली पड़ जाती है और अगर कहीं 3-4 बच्चे हो जाएँ तो चूत बिल्कुल ढीली पड़ जाती है और मर्द लोगों को चुदाई का मज़ा नहीं आता।
‘तुझको दर्द तो हुआ होगा बहुत?’
‘हाँ पहली बार तो हुआ था लेकिन मेरा आदमी तेल लगा कर मुझको चोदता था तो इतना दर्द नहीं होता था।’
‘पर तुझको मज़ा तो नहीं आता होगा?’
‘नहीं मुझको मज़ा नहीं आता था और बाद में पति के सो जाने पर मुझको ऊँगली करनी पड़ती थी। वैसे गाँव की कई औरतों ने मुझको बताया है उनके आदमी भी गांड मारते हैं उनकी।’
‘अच्छा यह बता तेरे पति की चुदाई से तेरा बच्चा क्यों नहीं हुआ?’
‘मेरे पति के वीर्य बड़ा ही पतला था और बहुत जल्दी ही वो झड़ जाता था।’
‘कितने साल हो गए तेरी शादी को?’
वो बोली- 3 साल हो जायेंगे अगले महीने!
वो उदास हो कर बोली।
‘इस बीच किसी और मर्द से नहीं चुदवाया क्या?’
वो शर्मा गई और बोली- नहीं छोटे मालिक!
यह कहते हुए मुझको लगा कि वो झूठ बोल रही है, मैंने कहा- मुझको लगता है तुम काफी चुदी हुई हो। सच बताना क्या किसी और से भी चुदवाया है कभी? मैं बिल्कुल बुरा नहीं मानूँगा।
वो काफी देर चुप रही लेकिन मैं उसके चेहरे के भाव पढ़ कर यह अंदाजा लगा रहा था कि सच बोलने से घबरा रही है।
‘निर्मला सच बता दो, मैं बिल्कुल किसी को नहीं बताऊँगा। कौन था वो जिससे चुदवाती रही थी तुम?’
निर्मला बोली- मेरे पड़ोस का लड़का था। हमारा गुसलखाना नहीं है तो हम या तो नदी पर नहाती हैं या फिर घर के बाहर छप्पर में कपड़ा बाँध कर नहा लेती हैं। एक दिन मैं नहा रही थी तो मुझको चुदवाने की गर्मी सताने लगी तो मैं बिना सोचे चूत में ऊँगली डाल कर अपनी तसल्ली कर रही थी कि मुझको ऐसा लगा कि कोई मुझको देख रहा है? मैं चौकन्नी हो गई और उठ कर देखा तो पड़ोस का लड़का छुप छुप कर मुझको नहाते हुए देख रहा था।
‘फिर क्या हुआ?’ मैं बोला।
‘वो भी गर्मी में आकर मुठ मार रहा था… मुझको देख कर भाग गया। उसका लंड देख कर मेरा दिल मचल गया लेकिन मैं अपनी तरफ से पहल नहीं करना चाहती थी।’
यह कहते हुए निर्मला फिर गर्म हो गई और मेरे लंड के साथ खेलने लगी, मैं भी अपना हाथ उसकी चूत पर फेर रहा था।
उसकी चूत काफी गीली हो गई थी, मैं लेट गया और उसको अपने ऊपर आने के लिए कहा, वो झट से मेरे ऊपर आ गई और मेरा लंड अपनी चूत में डाल कर मुझको ऊपर से धक्के मारने लगी।
मैं भी उसके मम्मों के साथ खेल रहा था, मेरी एक ऊँगली उसकी भगनसा को धीरे से मसल रही थी और फिर जल्दी ही निर्मला एकदम पूरे जोश में आ गई और मुझको काफी ज़ोर से चोदने लगी। उसकी कमर बड़ी तेज़ी से ऊपर नीचे हो रही थी, उसकी आँखें बंद थी और चुदाई का पूरा आनन्द ले रहे थी।
थोड़ी देर में ही वो ‘ओह्ह ओह्ह…’ करती हुई झड़ गई और मेरे ऊपर लेट गई। मैं उसकी मोटी गांड में एक ऊँगली डाल कर गोल गोल घुमाने लगा।
ऐसा करने से ही उसकी गांड अपने आप हिलने लगी और मेरी ऊँगली को लगा कि उसकी गांड खुल और बंद हो रही है।
दिल तो किया कि मैं भी इसकी गांड में लंड डाल दूँ लेकिन मन में बैठी घृणा ने मुझको ऐसा करने से रोक दिया।
जब वो बिस्तर पर फिर लेटी तो मैंने पूछा- फिर क्या हुआ उस लड़के के साथ?
वो बोली- वो लड़का डर के मारे मेरे पास ही नहीं आता था।
एक दिन मैं जंगल-पानी करके आ रही थी, वह लड़का मिल गया और बोला- भौजी बुरा तो नहीं माना न?
‘नहीं रे, बुरा क्या मानना है?’ मैं बोली।
‘तो भौजी हो जाए किसी दिन?’
‘क्या हो जाए?’
‘अरे वही जो भैया करते थे तुम्हारे साथ!’
धत्त… ऐसा भी कभी होता है? पिद्दी भर का लौण्डा और यह बात?’
‘पिद्दी कहाँ, तुमने मेरा लंड देख लिया था न, पूरा मर्दाना है।’
‘चल दिखा खोल कर?’
‘क्या कह रही हो भौजी? यहाँ दिखाऊँ क्या?’
‘नहीं, इधर ईख के खेत में आ जा!’
ईख के खेत में मैंने उसका लंड देखा, होगा 5 इंच का।
लेकिन मेरे ऊपर तो कामवासना का भूत सवार था, मैंने उसका लंड पकड़ लिया और उसको लिटा दिया और मैं उसके ऊपर चढ़ बैठी और ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगी ऊपर से और वो 2 मिन्ट में ही झड़ गया।
लेकिन उसका लंड अभी भी अकड़ा रहा और मैं फिर उसको चोदने लगी और दूसरी बार वो 10 मिन्ट तक डटा रहा और मेरा एक बार उसके साथ ही छूट गया।
मैं चुप बैठा रहा।
निर्मला ने पूछा- छोटे मालिक, कहीं आप बुरा तो नहीं मान गए?
निर्मला गैर मर्दों से अपनी चूत चुदाई के किस्से सुनाती रही, मैं चुप बैठा रहा।
निर्मला ने पूछा- छोटे मालिक, कहीं आप बुरा तो नहीं मान गए?
‘नहीं नहीं… बुरा कैसा! अच्छा किया अपनी तसल्ली कर ली तुमने! सच बताना उस लड़के के इलावा किसी और से तो नहीं करवाया तुमने?’
‘नहीं नहीं छोटे मालिक, बिल्कुल नहीं!’
‘और किसी औरत या लड़की के साथ तो नहीं किया कभी?’
‘यह आप क्या पूछ रहे हैं छोटे मालिक?’
‘नहीं मैंने सुना है तुम औरतें आपस में भी खूब लग जाती हो एक दूसरी के साथ!’
वो चुप रही और उसकी यह चुप्पी से मुझको लगा कि आपसी सम्बन्ध भी थे इसके दूसरी औरतों के साथ।
‘नदी में कहाँ नहाती हो तुम सब?’
‘वही जो घाट है न उस पर ही नहाती हैं सब, लेकिन आदमियों और लड़कों का उस तरफ आना मना है।’
‘अच्छा? कोई जगह तो होगी जहाँ से कुछ देखा जा सके?’
वो हिचकते हुए बोली- है तो सही, आप देखना चाहते हैं क्या?
‘अगर तुम दिखाओ तो इनाम मिलेगा।’
वो बोली- कल देखने आ सकते हो?
‘हाँ, क्यों नहीं।’
‘अच्छा तो मैं आपको ले जाऊँगी।’
फिर हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में सो गये।
सुबह होने से पहले मैंने निर्मला को फिर चोदा और उसके गोल और मोटे चूतड़ जो एक मोटे गद्दे के समान थे, मुझको बहुत ही सेक्सी लगते थे और मैं उनको बार बार छूना चाहता था।
नाश्ता करने के बाद मैं और निर्मला दोनों नदी की ओर चल पड़े। नदी के निकट आते ही निर्मला मुझसे आगे चलने लगी और मैं उसके पीछे थोड़ी दूर पर चलने लगा।
फिर उसने मुझको इशारा किया और हम एक घनी झड़ी की ओर मुड़ गए।
काँटों से बचते हुए हम एक जगह पहुँचे जहाँ हम बिल्कुल छिप गए थे लेकिन नदी की तरफ़ हम साफ़ देख सकते थे।
निर्मला अपने साथ एक चादर लाई थी और हमने वो बिछा ली और हम दोनों आराम से बैठ गए। फिर मैंने जगह का जायज़ा लिया और देखा कि वो तो पूरी तरह से ढकी छुपी थी और हमको कोई देख भी नहीं सकता था।
नदी पर अभी इक्का दुक्का औरतें ही नहा रहीं थीं लेकिन उनमें कोई देखने लायक नहीं थी। तो थोड़ी फुर्सत थी तो मैंने निर्मला को चूमना शुरू कर दिया, उसके ब्लाउज के अंदर हाथ डाल कर उसके गोल उरोजों के साथ खेलना शुरू कर दिया।
फिर एक हाथ उसकी धोती के अंदर डाल दिया और उसकी बालों भरी चूत को मसलने लगा, वो धीरे धीरे गरम होने लगी, उसने मेरी पैंट से मेरे लंड को निकाल लिया, वो उसका हाथ लगते ही एकदम अकड़ गया।
वो उसको हाथ से हिलाने लगी, तब तक उसकी चूत भी गर्म हो कर पनिया गई थी।
निर्मला बोली- बैठ कर ही कर लेते हैं।
वो कैसे?
उसने अपनी टांगें पसार दी और धोती को ऊपर कर दिया और मुझको टाँगों के बीच मैं बैठने के लिए कहने लगी। मैं लंड को निकाल कर टांगों के बीच बैठ गया और तब वो अपने हाथ से मेरा लौड़ा अपनी चूत के मुंह पर रख कर मुझको धक्का मारने के लिए बोलने लगी।
एक ही धक्के में लौड़ा पूरा अंदर चला गया और मैंने अपने हाथ उसकी गर्दन में डाल दिए और ज़ोर से धक्के मारने लगा। वो भी जवाबी धक्के मारती रही।
उधर हमने नदी की तरफ देखा तो एक जवान नई दुल्हन नहाने के लिए कपड़े बदल रही थी।
गाँव के हिसाब से वो काफी जवान और सुन्दर लग रही थी।
उसने ब्लाउज उतार दिया बिना किसी शर्म झिझक के उसके छोटे लेकिन कठोर उरोज बाहर आ गए थे।
इधर मैं और निर्मला एक दूसरे से अपने अंगों से जुड़े थे, लेकिन हमारी नज़रें तो नदी किनारे उस नई दुल्हनिया पर अटकी थीं।
उसने सिर्फ ब्लाउज ही उतारा और पेटीकोट के साथ ही नहाने लगी। वो सारे शरीर पर साबुन लगा रही थी और खास तौर पर अपनी चूत पर तो वो 5 मिन्ट साबुन रगड़ती रही। और फिर वो नदी के अंदर चली गई और तैरती हुई थोड़ी दूर चली गई।
पानी से गीला उसका बदन चमक रहा था, जब वो नदी की सतह से ऊपर आती थी तो उसके गोल उरोज धूप में चमकते थे। ऐसा लगता था कि सोने की परी नदी में तैर रही हो।
यह सब देख कर मेरे लंड पूरे जोश में आ गया और मैंने अपने हाथ निर्मला की गांड के नीचे रखे और फ़ुल स्पीड से धक्के मारने लगा।
‘ओह्ह्ह ओह्ह…’ करती हुई निर्मला तो झड़ गई लेकिन मैं अभी भी जोश में था, आँखें उस अर्धनग्न स्त्री पर थी जो मुक्त पंछी की तरह नदी में तैर रही थी और जिसका पेटिकोट भी उसके शरीर के साथ चिपक गया था और उस गीले कपड़े में से उसकी गोल जांघें और चूतड़ साफ़ दिख रहे थे, हल्की झलक उसकी काली झांटों की भी मिल रही थी।
मैं बेतहाशा निर्मला को चूमने लगा और उसके चूतड़ जो मेरे हाथों में थे तेज़ी से आगे पीछे करने लगा।
और फिर मैंने निर्मला को घोड़ी बना दिया और उसको पीछे से तेज़ तेज़ चोदने लगा।
लेकिन मेरी नज़र उस नहाती हुई औरत पर ही थी।
जब निर्मला एक बार और छूटी तो मैं भी उसको छोड़ कर वहाँ बैठ गया, तभी वो औरत जिधर हम बैठे थे उधर आने लगी। उसके हाथ में पेटीकोट और ब्लाउज था।
मैंने घबरा के निर्मला को देखा, वो मस्त बैठी थी। मेरा डर समझते हुए उसने अपने होंटों पर ऊँगली रख कर कहा कि चुप रहूँ।
मैं हैरानी से उस आती हुई औरत को देखने लगा जो हमारी झाड़ी के निकट आ गई लेकिन 10 फ़ीट पहले रुक गई और इधर उधर देखने के बाद उसने अपना गीला पेटीकोट उतार दिया और धुला हुआ पहनने लगी।
उसी समय उसकी चूत के पूरे दर्शन हो गए। काले चमकीले बालों से घिरी चूत को उसने गीले पेटीकोट से पौंछा।
ऐसा करते समय उसकी चूत के अंदर की लाली भी दिख गई, मैं निहाल हो गया।
वो जल्दी से पेटीकोट बदल कर वापस नदी किनारे चली गई लेकिन मेरे लंड का बुरा हाल कर गई।
मेरी हालत देख कर निर्मला को तरस आया और उसने अपने मुंह से मेरा लंड चूसना शुरू कर दिया। उसके ऐसा करते ही मेरा फव्वारा छूटा और निर्मला ने सारा रस अपने मुंह में ले लिया।
हम थक कर वहीं पसर गए।
मुझको याद आया कि यह नज़ारा मैंने पहले भी देखा था, कम्मो के साथ जब हमने चम्पा को नहाते हुए देखा था।बिलकुल वही दृश्य था लेकिन चम्पा तब बहुत ही सेक्सी लग रही थी क्यूंकि वो चुदाई का आनन्द काफी समय ले चुकी थी और यह लड़की तो नई नई शादी का आनन्द ले रही थी।
अब नदी किनारे कोई सुन्दर औरत नहीं थी जिसको देखने के लिए हम रुकते तो जल्दी ही वहाँ से चल दिए और कॉटेज में आ गए। जहाँ हमने लेमन पी फिर वहीं लेट गए।
मैंने निर्मल को कहा कि वो घर जाये, मैं बाद में आता हूँ।
वहीं यह सोचने लगा कि लखनऊ में मुझको चूत कहाँ से मिलेगी। उसका इंतज़ाम तो करना पड़ेगा। मैं चाहता था कि अभी तक मेरे पास गाँव की लड़की की तरह ही होनी चाहिए वरना वहाँ चुदाई का प्रबंध नहीं हो पायेगा।
मैंने सोचा कि यह काम तो चम्पा ही कर सकती है तो मैंने निर्मला को चम्पा को बुलाने का काम सौंपा और वो शाम को मुझको कॉटेज में मिली।
तब मैंने उसको सारी बात बताई और कहा कि मेरे मतलब की कोई गाँव वाली लड़की लखनऊ के लिए ढूंढ दे।
उसने वायदा किया कि वो जल्दी ही मेरी मर्ज़ी की लड़की ढूंढ देगी यह कह कर वो चली गई।
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